न्यायमूर्ति संजीव खन्ना(Justice Sanjiv khanna) : भारतीय न्यायपालिका का एक स्तंभ
भारत की न्याय प्रणाली ने कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों को देखा है, जिन्होंने देश के कानूनों को आकार दिया है, और ऐसा ही एक प्रमुख व्यक्ति हैं न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हैं और अपने विशिष्ट करियर के लिए जाने जाते हैं। प्रगतिशील व्याख्याओं, संतुलित निर्णयों, और लोक विधि में योगदान के लिए प्रसिद्ध न्यायमूर्ति खन्ना भारतीय न्यायशास्त्र के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में उभरे हैं।
कानूनी पृष्ठभूमि वाले परिवार में जन्मे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का न्यायपालिका तक पहुंचने का मार्ग पूर्वनिर्धारित प्रतीत होता है। उन्होंने अपनी दयालुता और न्याय की प्रबल भावना से पहचाना जाने वाला न्यायिक दृष्टिकोण अर्जित किया है। भारतीय न्याय प्रणाली में उनका सफर संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा, और समावेशी कानूनी ढांचे को बढ़ावा देने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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ToggleJustice Sanjiv Khanna जी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना एक सुदृढ़ कानूनी विरासत वाले परिवार से आते हैं। उनके पिता, देव राज खन्ना, एक वरिष्ठ अधिवक्ता थे, जबकि उनके चाचा न्यायमूर्ति हंसराज खन्ना भारतीय न्यायिक इतिहास में एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्हें आपातकाल (1975-1977) के दौरान एडीएम जबलपुर मामले में अपने असहमतिपूर्ण मत के लिए जाना जाता है। इस ऐतिहासिक निर्णय में न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना ने जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का बचाव किया, और यह भारतीय संवैधानिक कानून का एक महत्वपूर्ण आधार है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने दिल्ली के प्रतिष्ठित संस्थानों से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा प्राप्त की। संवैधानिक कानून और कानूनी दर्शन की गहरी समझ उनके पूरे करियर में स्पष्ट रही है, और इसने उनके सहकर्मियों और कानूनी समुदाय में प्रशंसा प्राप्त की है।
न्यायपालिका में पेशेवर यात्रा
न्यायमूर्ति खन्ना का न्यायिक करियर तब शुरू हुआ जब उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में 2005 में नियुक्त किया गया। वर्षों के दौरान, उन्होंने नागरिक विवादों, वाणिज्यिक मामलों, संवैधानिक मुद्दों से लेकर आपराधिक कानून तक विभिन्न मामलों का निपटारा किया, जो उनकी व्यापक कानूनी विशेषज्ञता को दर्शाता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय में उनके कार्यकाल को ऐसे प्रमुख निर्णयों के लिए याद किया जाता है जिन्होंने लोक विधि और सामाजिक न्याय को आकार दिया। उदाहरण के लिए, उन्होंने पर्यावरणीय मुद्दों, मानवाधिकारों, और श्रम कानूनों से जुड़े मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। न्यायमूर्ति खन्ना की संवेदनशीलता समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों की ओर अक्सर उनके निर्णयों में दिखाई देती है, जो उनके न्यायपूर्ण और समान कानूनी प्रणाली में विश्वास को दर्शाता है।
उनके गहन निर्णय और कानून के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें 18 जनवरी, 2019 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति दिलाई। सर्वोच्च न्यायालय में उनकी नियुक्ति को व्यापक रूप से सराहा गया, और उन्होंने भारतीय कानून में एक सम्मानित स्थान स्थापित किया।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के महत्वपूर्ण निर्णय
न्यायमूर्ति खन्ना के करियर की एक प्रमुख विशेषता यह है कि उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में भूमिका निभाई है, जो भारत के कानूनी और सामाजिक परिदृश्य को आकार देते हैं। उनके सर्वोच्च न्यायालय के कार्यकाल में उन्होंने कई प्रमुख मुद्दों, जैसे कि संवैधानिक अधिकारों से लेकर कॉर्पोरेट विवादों तक, पर फैसले सुनाए हैं। यहां कुछ प्रमुख निर्णय दिए जा रहे हैं:
1. समलैंगिकता का अपराधमुक्ति (नवतेज सिंह जौहर मामला)
भारतीय कानूनी इतिहास के सबसे प्रगतिशील और प्रशंसित निर्णयों में से एक, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 2018 में समलैंगिकता को अपराधमुक्त किया। यह ऐतिहासिक निर्णय LGBTQ+ समुदाय के लिए एक बड़ी जीत थी, जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को हटा दिया, जो सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध मानता था। न्यायमूर्ति खन्ना के समानता और मानवाधिकारों के प्रति दृढ़ विश्वास ने लाखों भारतीयों के लिए सम्मान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहाल करने में योगदान दिया।
2. निजता का अधिकार (पुट्टास्वामी निर्णय)
एक और महत्वपूर्ण निर्णय में, न्यायमूर्ति खन्ना ने निजता के अधिकार का विस्तार एक मौलिक अधिकार के रूप में करने में योगदान दिया, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने डिजिटल युग में निजता के महत्व को रेखांकित किया, जो व्यक्तिगत डेटा और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए एक मिसाल बन गया।
3. कॉर्पोरेट गवर्नेंस और दिवालियापन
न्यायमूर्ति खन्ना ने कॉर्पोरेट कानून से जुड़े मामलों में भी भूमिका निभाई, खासकर जो दिवालियापन और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) से संबंधित थे। इन मामलों में उनके निर्णयों ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया और दिवालियापन विवादों को हल किया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ और कानूनी रूप से अनुपालनशील बनाए रखने में मदद मिली।
4. महिला अधिकार और लैंगिक समानता
न्यायमूर्ति खन्ना ने हमेशा लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति दिखाई है। उनके निर्णयों में अक्सर महिलाओं के अधिकारों से संबंधित कानूनों की प्रगतिशील व्याख्या की आवश्यकता पर बल दिया गया है, चाहे वह रोजगार, संपत्ति अधिकारों, या घरेलू हिंसा से सुरक्षा के मामलों में हो। उनके फैसले अक्सर एक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण के साथ होते हैं, जिसका उद्देश्य महिलाओं को कानूनी सुधारों के माध्यम से सशक्त करना होता है।
न्यायिक दर्शन: परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन
न्यायमूर्ति खन्ना को अन्य समकालीन न्यायाधीशों से अलग जो चीज बनाती है, वह है उनका संतुलित दृष्टिकोण। वे भारत की समृद्ध कानूनी परंपराओं का सम्मान करते हैं, जबकि मानवाधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं के संदर्भ में आधुनिकता को भी अपनाते हैं। उनके निर्णय कानून की एक विकसित समझ को दर्शाते हैं, जो बदलते सामाजिक गतिशीलता को पहचानता है और उसी के अनुसार अनुकूलित करता है।
न्यायमूर्ति खन्ना के कानूनी दर्शन में संवैधानिक नैतिकता और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इस विश्वास ने उन्हें निजता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और लैंगिक समानता जैसे फैसलों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। वे लगातार इस विचार के लिए खड़े हुए हैं कि संविधान एक जीवित दस्तावेज़ है, जो समकालीन समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप ढल सकता है।
चुनौतियाँ और विवाद
कई सार्वजनिक हस्तियों की तरह, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने भी अपने कार्यकाल के दौरान चुनौतियों का सामना किया है। उनकी सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति, जिसमें कई वरिष्ठ न्यायाधीशों को बाईपास किया गया था, ने कुछ विवादों को जन्म दिया, क्योंकि यह वरिष्ठता-आधारित नियुक्तियों की परंपरा के विपरीत थी। हालांकि, अपने न्यायिक प्रदर्शन और अच्छे निर्णयों के कारण उन्होंने आलोचकों को चुप करा दिया और अपनी योग्यता साबित की।
उनके करियर का एक और उल्लेखनीय क्षण नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) से संबंधित सुनवाई के दौरान आया। जबकि मामला अभी चल रहा है, न्यायमूर्ति खन्ना की इन सुनवाई में भागीदारी ने ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि यह मुद्दा नागरिकता, समानता, और भारत में धर्मनिरपेक्षता जैसे बुनियादी प्रश्नों से संबंधित है।
भारतीय कानून पर विरासत और प्रभाव
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का भारतीय कानून पर प्रभाव गहरा है। उनके फैसलों ने न केवल देश के कानूनी ढांचे को प्रभावित किया है, बल्कि इसके सामाजिक प्रभाव भी व्यापक रूप से देखे जा सकते हैं। उन्हें एक ऐसे न्यायाधीश के रूप में देखा जाता है जो परंपरा और प्रगति के बीच की खाई को पाटते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि न्याय भारत के संवैधानिक मूल्यों और बदलते समय के साथ सुसंगत रूप से प्रदान किया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय के एक हिस्से के रूप में, न्यायमूर्ति खन्ना महत्वपूर्ण कानूनी चर्चाओं को आकार देना जारी रखते हैं। उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा, समानता को बढ़ावा देने, और सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता यह सुनिश्चित करती है कि उनकी विरासत को आधुनिक भारतीय न्यायशास्त्र के प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक के रूप में याद किया जाएगा .