सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, जिसे आमतौर पर AFSPA कहा जाता है, भारत में सबसे चर्चित और विवादास्पद कानूनों में से एक है। इसे पहली बार 1958 में लागू किया गया था। AFSPA ने जहां सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सशक्त बनाया है, वहीं इसे मानवाधिकार हनन और नागरिकों पर इसके प्रभाव के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ी है।
इस ब्लॉग में, हम सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, के इतिहास, प्रावधानों, उपयोग, विवादों और इससे जुड़ी विभिन्न धाराओं को विस्तार से समझेंगे।
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Toggleसशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, क्या है?
AFSPA सशस्त्र बलों को “अशांत क्षेत्रों” में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है। अशांत क्षेत्र वह क्षेत्र है जिसे सरकार कानून-व्यवस्था के बिगड़ने के कारण संकटग्रस्त मानती है और जहां सैन्य हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, के मुख्य प्रावधान:
- अशांत क्षेत्र की घोषणा: केंद्र या राज्य सरकार किसी क्षेत्र को “अशांत” घोषित कर सकती है, जिससे वहां सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, लागू हो जाता है।
- सशस्त्र बलों को विशेष अधिकार:
- बल प्रयोग का अधिकार: सशस्त्र बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों पर बल प्रयोग, यहां तक कि घातक बल प्रयोग, का अधिकार है।
- बिना वारंट गिरफ्तारी: किसी भी व्यक्ति को अपराध के संदेह में बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है।
- तलाशी अभियान: संपत्ति या वाहन की तलाशी बिना वारंट के की जा सकती है।
- संपत्ति जब्ती: किसी भी अवैध उपयोग वाली संपत्ति को जब्त किया जा सकता है।
- कानूनी प्रतिरक्षा: सशस्त्र बलों के सदस्यों को उनके कार्यों के लिए कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा दी गई है, जब तक कि केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृति न दी जाए।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
AFSPA की जड़ें औपनिवेशिक युग में हैं। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अध्यादेश पेश किया, जिसका उद्देश्य भारत छोड़ो आंदोलन को दबाना था।
स्वतंत्रता के बाद, नागालैंड और उत्तर-पूर्व जैसे क्षेत्रों में अशांति और अलगाववादी आंदोलनों से निपटने के लिए 1958 में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम लागू किया गया।
धीरे-धीरे, सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, का दायरा बढ़ा और यह जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों तक फैल गया, जहां आतंकवाद और सीमापार हिंसा की चुनौतियां उभरीं।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, लागू करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
AFSPA का उद्देश्य सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में निर्णायक रूप से कार्य करने के लिए सशक्त बनाना था। इसके पीछे मुख्य कारण थे:
- विद्रोह से निपटना: स्वतंत्रता के बाद भारत को उत्तर-पूर्व और जम्मू-कश्मीर में कई विद्रोहों का सामना करना पड़ा। AFSPA ने इनसे निपटने के लिए कानूनी आधार प्रदान किया।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना: यह कानून सीमावर्ती क्षेत्रों में संप्रभुता की रक्षा और अलगाववादी आंदोलनों को रोकने का एक साधन है।
- सार्वजनिक व्यवस्था बहाल करना: जिन क्षेत्रों में प्रशासन असफल हो गया, वहां AFSPA ने सेना को स्थिरता लाने के उपाय दिए।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, कहां लागू है?
AFSPA समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में लागू रहा है, लेकिन यह पूरे देश में समान रूप से लागू नहीं है।
वर्तमान में:
- उत्तर-पूर्व भारत: नागालैंड, मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में AFSPA लागू है, हालांकि कुछ क्षेत्रों से इसे हटाया गया है।
- जम्मू और कश्मीर: 1990 में बढ़ते आतंकवाद के कारण यहां AFSPA लागू किया गया।
सरकार समय-समय पर इसकी प्रासंगिकता की समीक्षा करती है और इसे उन क्षेत्रों से हटा देती है जहां स्थिति सामान्य हो जाती है।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, से जुड़े विवाद
AFSPA भारत के सबसे विवादास्पद कानूनों में से एक है। जहां इसके समर्थक इसे राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक मानते हैं, वहीं आलोचक इसे मानवाधिकारों के उल्लंघन का माध्यम मानते हैं।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, के पक्ष में तर्क
- सशस्त्र बलों को स्वतंत्रता: यह कानून सशस्त्र बलों को संघर्ष क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए कानूनी समर्थन प्रदान करता है।
- विद्रोह नियंत्रण में सफलता: समर्थकों का कहना है कि AFSPA ने उत्तर-पूर्व जैसे क्षेत्रों में विद्रोह को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाई है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा का संरक्षण: सीमावर्ती क्षेत्रों में त्वरित कार्रवाई के लिए AFSPA एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, की आलोचनाएं
- मानवाधिकार हनन: AFSPA लागू क्षेत्रों में फर्जी मुठभेड़ों, हिरासत में मौतों, यातना और यौन हिंसा के आरोप लगे हैं।
- जवाबदेही की कमी: कानून के तहत सशस्त्र बलों को मिली प्रतिरक्षा से पीड़ितों के लिए न्याय पाना कठिन हो जाता है।
- नागरिकों का अलगाव: आलोचकों का कहना है कि AFSPA स्थानीय जनता और सरकार के बीच अविश्वास को बढ़ावा देता है।
- लंबे समय तक लागू रहना: अस्थायी उपाय के रूप में बनाया गया यह कानून कुछ क्षेत्रों में दशकों से लागू है।
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, से जुड़े प्रमुख घटनाक्रम
- इरोम शर्मिला का अनशन
मणिपुर की “आयरन लेडी” इरोम शर्मिला ने 2000 में मालोम नरसंहार (जिसमें 10 नागरिक मारे गए) के बाद AFSPA के खिलाफ 16 वर्षों तक भूख हड़ताल की। - सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप:
- नगा पीपल्स मूवमेंट बनाम भारत संघ (1997) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने AFSPA की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन इसके दुरुपयोग को रोकने पर जोर दिया।
- 2016 में, कोर्ट ने सशस्त्र बलों को AFSPA के तहत किए गए अत्याचारों के लिए जिम्मेदार ठहराने का आदेश दिया।
- जस्टिस जीवन रेड्डी समिति (2005)
सरकार द्वारा गठित इस समिति ने AFSPA को समाप्त करने और इसकी जगह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) लागू करने की सिफारिश की। हालांकि, इन सिफारिशों पर आज तक अमल नहीं हुआ।
सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच संतुलन
सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, पर बहस का मुख्य बिंदु राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और मानवाधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन बनाना है। कुछ सुझाव जो इस दिशा में दिए गए हैं:
- नियमित समीक्षा: सरकार को हर क्षेत्र में AFSPA की आवश्यकता का आकलन करना चाहिए और स्थिर क्षेत्रों से इसे हटाना चाहिए।
- जवाबदेही सुनिश्चित करना: कानून के दुरुपयोग के खिलाफ शिकायतों की त्वरित जांच और न्याय सुनिश्चित करना।
- संवाद और विकास: स्थानीय समुदायों के साथ संवाद स्थापित करना और विद्रोह के मूल कारणों को दूर करने के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
- सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, में संशोधन: कानून में ऐसे प्रावधान शामिल करना जो इसके दुरुपयोग को रोकें, जैसे अभियानों की न्यायिक निगरानी।
वर्तमान स्थिति और आगे का रास्ता
पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने कई क्षेत्रों से AFSPA हटाकर स्थानीकरण और सैन्य हस्तक्षेप में कमी की दिशा में कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए:
- मार्च 2022 में, नागालैंड, असम और मणिपुर के कुछ हिस्सों से AFSPA को आंशिक रूप से हटाया गया।
हालांकि ये कदम सही दिशा में हैं, लेकिन व्यापक लक्ष्य ऐसा माहौल बनाना होना चाहिए, जहां ऐसे कानूनों की आवश्यकता ही न पड़े। इसके लिए लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करना, सरकार और नागरिकों के बीच विश्वास बहाल करना, और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
AFSPA भारत के कानूनी ढांचे का एक महत्वपूर्ण लेकिन विवादास्पद हिस्सा है। सुरक्षा पर इसके प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे सुधारने और इसके दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। संवाद और विकास को