हिज़बुल्लाह की अनदेखी ताकत: जानिए कैसे यह संगठन दुनिया को हिला रहा है। 2024

हिज़बुल्लाह की अनदेखी ताकत: जानिए कैसे यह संगठन दुनिया को हिला रहा है।
Facebook
Twitter
Telegram
WhatsApp

हिज़बुल्लाह की ताकत: एक विस्तृत विश्लेषण

हिज़बुल्लाह, एक शिया मुस्लिम संगठन, 1982 में लेबनान में गठित हुआ। यह संगठन मुख्य रूप से इज़राइल के खिलाफ अपने संघर्ष और पश्चिमी हस्तक्षेप के विरोध के लिए जाना जाता है। हालांकि इसकी सैन्य क्षमता उल्लेखनीय है, हिज़बुल्लाह की वास्तविक ताकत उसकी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और अंतरराष्ट्रीय कनेक्शनों से भी जुड़ी हुई है। इस लेख में, हम हिज़बुल्लाह की विभिन्न ताकतों की विस्तार से चर्चा करेंगे।

1. सैन्य शक्ति

हिज़बुल्लाह की सैन्य ताकत इसकी सबसे प्रमुख विशेषता है। संगठन ने इज़राइल के खिलाफ कई बड़े संघर्षों में भाग लिया है, और इसे एक प्रभावी सैन्य प्रतिरोध के रूप में देखा जाता है। हिज़बुल्लाह की सैन्य शक्ति की नींव उसका अनुशासन, रणनीतिक दक्षता, और आधुनिक हथियारों तक उसकी पहुंच है।

इसके लड़ाके गुरिल्ला युद्ध में कुशल हैं और उन्नत हथियारों जैसे कि मिसाइल, ड्रोन, और गुप्त बंकर-ध्वंसक तकनीक का उपयोग करते हैं, जो इसे एक प्रभावशाली क्षेत्रीय सैन्य बल बनाते हैं।

2. राजनीतिक प्रभाव

हिज़बुल्लाह एक सैन्य संगठन होने के साथ-साथ लेबनान की राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग लेता है। 1992 में पहली बार चुनावों में भाग लेने के बाद, संगठन ने लगातार अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाया है। वर्तमान में, हिज़बुल्लाह लेबनान की संसद और सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हिज़बुल्लाह की राजनीतिक शक्ति का मुख्य कारण इसका गहरा जनसमर्थन है, विशेष रूप से लेबनानी शिया समुदाय के बीच। संगठन ने स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के माध्यम से जनता का विश्वास हासिल किया है, जो इसे एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरने में मदद करता है।

3. सामाजिक और धार्मिक प्रभाव

हिज़बुल्लाह की ताकत का एक महत्वपूर्ण स्तंभ उसका सामाजिक और धार्मिक आधार है। संगठन शिया इस्लाम की धार्मिक धारणाओं पर आधारित है और अपने अनुयायियों के बीच गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध बनाता है। हिज़बुल्लाह अपने संघर्ष को इमाम हुसैन की शहादत और प्रतिरोध की परंपरा से जोड़ता है, जो इसकी विचारधारा को शक्ति प्रदान करता है।

संगठन ने लेबनान में व्यापक सामाजिक सेवाएं स्थापित की हैं, जिनमें अस्पताल, स्कूल और अन्य संस्थान शामिल हैं। ये सेवाएं हिज़बुल्लाह को जनता के बीच गहरी पैठ बनाने में मदद करती हैं और संगठन को सामाजिक रूप से शक्तिशाली बनाती हैं।

4. ईरान और सीरिया से सहयोग

हिज़बुल्लाह की शक्ति का एक बड़ा स्रोत ईरान और सीरिया से उसे मिलने वाला समर्थन है। ईरान ने हिज़बुल्लाह को वित्तीय सहायता, सैन्य प्रशिक्षण और हथियार प्रदान किए हैं, जिससे संगठन की सैन्य शक्ति में वृद्धि हुई है। ईरान हिज़बुल्लाह को एक क्षेत्रीय सहयोगी के रूप में देखता है, जो पश्चिमी प्रभाव का मुकाबला करने में उसकी मदद करता है।

सीरिया भी हिज़बुल्लाह का एक महत्वपूर्ण सहयोगी रहा है, विशेष रूप से 2011 में शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध के बाद। इन दोनों देशों से प्राप्त समर्थन ने हिज़बुल्लाह की सैन्य और राजनीतिक ताकत को और मजबूत किया है।

5. प्रचार तंत्र और मीडिया नेटवर्क

हिज़बुल्लाह का प्रचार तंत्र भी उसकी शक्ति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संगठन का अपना टीवी चैनल “अल मनार” है, जो उसके संदेशों को प्रसारित करने और उसकी सैन्य सफलताओं को उजागर करने का काम करता है।

इसके माध्यम से, हिज़बुल्लाह ने अपनी विचारधारा और सैन्य प्रतिरोध को न केवल लेबनान में, बल्कि पूरे अरब और इस्लामी दुनिया में फैलाया है। संगठन ने खुद को इज़राइल और पश्चिमी ताकतों के खिलाफ वैध प्रतिरोध के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी प्राप्त हुआ है।

6. आर्थिक आधार

हिज़बुल्लाह की आर्थिक शक्ति भी उसकी ताकत का एक महत्वपूर्ण पहलू है। संगठन को ईरान से वित्तीय सहायता मिलती है, लेकिन इसके अलावा यह लेबनान और विदेशों में कई व्यापारिक गतिविधियों के माध्यम से धन जुटाता है।

हिज़बुल्लाह के पास लेबनान में कई व्यावसायिक उपक्रम हैं और इसका अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क भी है, जो संगठन को आर्थिक रूप से मजबूत बनाए रखता है। कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि हिज़बुल्लाह अवैध गतिविधियों, जैसे मादक पदार्थों की तस्करी, से भी धन अर्जित करता है।

इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच संघर्ष: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच का संघर्ष मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक और सामरिक परिवेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संघर्ष न केवल क्षेत्रीय प्रभुत्व से संबंधित है, बल्कि इसमें धार्मिक और राजनीतिक हित भी जुड़े हैं। हिज़बुल्लाह, जो एक शिया मुस्लिम संगठन है और जिसे ईरान और सीरिया का समर्थन प्राप्त है, इज़राइल के साथ लंबे समय से संघर्षरत है। आइए इस संघर्ष की पृष्ठभूमि और प्रमुख घटनाओं पर एक नजर डालें।

1. संघर्ष की शुरुआत

हिज़बुल्लाह का गठन 1982 में हुआ था, जब इज़राइल ने लेबनान पर आक्रमण किया था। इस आक्रमण का उद्देश्य फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) को कमजोर करना था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप हिज़बुल्लाह जैसा संगठन अस्तित्व में आया, जिसने इज़राइल की सैन्य उपस्थिति का कड़ा विरोध किया। हिज़बुल्लाह ने खुद को इज़राइल के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में स्थापित किया, और इज़राइल के खिलाफ अपनी सैन्य गतिविधियाँ बढ़ाईं।

2. 1985-2000: इज़राइल के खिलाफ पहला बड़ा प्रतिरोध

1985 में, इज़राइल ने दक्षिणी लेबनान में अपनी सेना तैनात की और एक “सुरक्षा क्षेत्र” बनाया। हिज़बुल्लाह ने इज़राइल की इस सैन्य उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया। हिज़बुल्लाह ने लगातार इज़राइली ठिकानों पर हमले किए और रॉकेट तथा मोर्टार के हमलों से इज़राइल को चुनौती दी। इन संघर्षों के बाद, 2000 में इज़राइल को अपनी सेना दक्षिणी लेबनान से हटानी पड़ी, जो हिज़बुल्लाह के लिए एक बड़ी जीत मानी गई।

3. 2006 का इज़राइल-लेबनान युद्ध

इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच सबसे बड़ा और प्रमुख टकराव 2006 में हुआ। इस संघर्ष की शुरुआत तब हुई जब हिज़बुल्लाह ने इज़राइली सैनिकों को बंधक बना लिया, जिसके जवाब में इज़राइल ने लेबनान पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में भारी विनाश हुआ, और लगभग 34 दिनों तक चलने वाले इस युद्ध में दोनों पक्षों ने भारी क्षति उठाई। इज़राइल ने हिज़बुल्लाह के ठिकानों और नागरिक इलाकों पर बमबारी की, जबकि हिज़बुल्लाह ने इज़राइल पर हजारों रॉकेट दागे।

युद्ध के बाद, हिज़बुल्लाह ने खुद को एक मजबूत और संगठित प्रतिरोध शक्ति के रूप में स्थापित किया, जो इज़राइल की सैन्य क्षमता का सामना कर सकता था। जबकि इज़राइल ने दावा किया कि उसने हिज़बुल्लाह को कमजोर किया, हिज़बुल्लाह ने इस संघर्ष से अपनी ताकत को और बढ़ाया और क्षेत्र में उसका समर्थन भी बढ़ा।

4. ईरान और सीरिया की भूमिका

इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच संघर्ष में ईरान और सीरिया का बड़ा योगदान है। ईरान, हिज़बुल्लाह का मुख्य समर्थक है, जो उसे वित्तीय सहायता और सैन्य संसाधन प्रदान करता है। ईरान के अलावा, सीरिया ने भी हिज़बुल्लाह को समर्थन दिया है, खासकर सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान, जब हिज़बुल्लाह ने सीरियाई सरकार का समर्थन किया।

ईरान और सीरिया से मिलने वाला यह समर्थन हिज़बुल्लाह की सैन्य शक्ति को लगातार मजबूत करता रहा है। इज़राइल का मानना है कि हिज़बुल्लाह की बढ़ती ताकत और उसके हथियारों का स्रोत ईरान है, और इसी कारण इज़राइल अक्सर सीरिया और लेबनान में हिज़बुल्लाह के ठिकानों पर हवाई हमले करता है।

5. वर्तमान स्थिति और भविष्य की चुनौतियां

हालांकि 2006 के युद्ध के बाद इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच सीधे संघर्ष कम हो गए हैं, फिर भी दोनों के बीच तनाव बना हुआ है। इज़राइल और हिज़बुल्लाह दोनों अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत कर रहे हैं, और क्षेत्र में ईरान का प्रभाव भी बढ़ रहा है। हिज़बुल्लाह ने लेबनान की राजनीति में भी अपनी स्थिति मजबूत की है, जिससे वह एक राजनीतिक और सैन्य शक्ति दोनों के रूप में उभर रहा है।

भविष्य में, इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच संघर्ष के फिर से भड़कने की संभावना बनी हुई है, खासकर अगर क्षेत्रीय परिस्थितियाँ बदलती हैं या ईरान और इज़राइल के बीच तनाव बढ़ता है। इस संघर्ष का समाधान खोजना कठिन है, क्योंकि इसमें केवल सैन्य टकराव ही नहीं, बल्कि धार्मिक, राजनीतिक और रणनीतिक मुद्दे भी गहरे जुड़े हुए हैं।

हसन नसरल्लाह, हिज़बुल्लाह के वर्तमान महासचिव और प्रमुख नेता, का जन्म 31 अगस्त 1960 को लेबनान के अल-बस्सरीह गांव में हुआ था। वह शिया समुदाय के एक प्रभावशाली धार्मिक और राजनीतिक नेता हैं, जिन्होंने हिज़बुल्लाह का नेतृत्व करते हुए इसे एक मजबूत सैन्य और राजनीतिक संगठन में बदल दिया है।

1992 में, अब्बास अल-मुसावी की हत्या के बाद नसरल्लाह ने हिज़बुल्लाह के महासचिव के रूप में जिम्मेदारी संभाली। उनके नेतृत्व में, संगठन ने इज़राइल और पश्चिमी हस्तक्षेपों के खिलाफ कई संघर्षों में भाग लिया और लेबनान की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की। हसन नसरल्लाह की रणनीतिक कुशलता और नेतृत्व क्षमता ने हिज़बुल्लाह को क्षेत्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण शक्ति बना दिया।

हसन नसरल्लाह का इज़राइल के प्रति एक दृढ़ विरोधी रुख रहा है। 2006 में हुए इज़राइल-लेबनान युद्ध के दौरान, नसरल्लाह ने हिज़बुल्लाह का नेतृत्व किया और इस संघर्ष ने उन्हें पूरे अरब जगत में एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया। उनके नेतृत्व को विशेष रूप से प्रतिरोध की एक शक्तिशाली छवि के रूप में देखा जाता है, जिससे उन्हें शिया समुदाय और अन्य समर्थकों के बीच अत्यधिक सम्मान मिला है।

नसरल्लाह की विचारधारा शिया इस्लामिक सिद्धांतों पर आधारित है और उन्हें ईरान का समर्थन भी प्राप्त है। वह हिज़बुल्लाह की सैन्य गतिविधियों के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक अभियानों का भी नेतृत्व करते हैं, जिससे संगठन का लेबनान में व्यापक प्रभाव बना हुआ है।

निष्कर्ष

इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच का संघर्ष मध्य पूर्व की राजनीति और भू-राजनीतिक ढांचे का एक अहम हिस्सा है। यह संघर्ष केवल दो पक्षों के बीच नहीं, बल्कि इसमें अन्य क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय ताकतों का भी योगदान है। हिज़बुल्लाह का लगातार बढ़ता प्रभाव और इज़राइल का सुरक्षा दृष्टिकोण दोनों ही इस संघर्ष को जटिल बनाते हैं, और इसका अंत कब और कैसे होगा, यह कहना मुश्किल है।

Facebook
Twitter
Telegram
WhatsApp
Picture of mots5018121@gmail.com

mots5018121@gmail.com

Leave a Comment

Top Stories

Girl Died Due to Eating Cabbage

Girl Died Due to Eating Cabbage|पत्ता गोभी बनी जानलेवा: 14 साल की बच्ची की मौत का दर्दनाक सच” Latest news 2024

Girl Died Due to Eating Cabbage : पत्तागोभी खाने से 14 साल की बच्ची की मौत: साधुवाली गांव की घटना से इलाके में मातम राजस्थान

Nitish Kumar Reddy

Nitish Kumar Reddy| नितीश कुमार रेड्डी की जीवनी: रिकॉर्ड्स, उपलब्धियां और भविष्य की संभावनाएं” – FAMOUS 2024

Nitish Kumar Reddy: जीवन परिचय, क्रिकेट क्यारिय, और उनकी प्राप्तिभा | Nitish Kumar Reddy Birthday प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: नितीश कुमार रेड्डी का जन्म 26

News In Hindi Today

News In Hindi Today| LATEST WEATHER UPDATE,पंजाब में एक दर्दनाक हादसा हुआ,भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चौथे टेस्ट मैच- 2024

News In Hindi Today : उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में सर्दी अपने चरम पर है। मौसम विभाग ने बारिश के लिए यलो अलर्ट जारी