Who Owns Strait Of Hormuz: तेहरान से जो खबर आई है, उसने दक्षिण और पूर्वी एशिया समेत पूरे विश्व को चिंता में डाल दिया है। अमेरिकी हमले के बाद ईरान की संसद ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है, जो अब सर्वोच्च सुरक्षा संस्था के पास अंतिम निर्णय के लिए भेजा गया है। अगर यह प्रस्ताव लागू हुआ तो इसके गंभीर परिणाम भारत, चीन और खाड़ी देशों पर पड़ेगे। आइए विस्तार से जानते हैं कि यह फैसला कितना बड़ा है और कैसे यह आम आदमी की जेब पर सीधा बोझ डालेगा।
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Toggleहोर्मुज जलडमरूमध्य(Strait Of Hormuz ) क्या है और क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण?
होर्मुज जलडमरूमध्य, ईरान और ओमान के बीच स्थित एक पतला लेकिन बेहद रणनीतिक जलमार्ग है। इसकी लंबाई लगभग 161 किलोमीटर और चौड़ाई सबसे संकरे हिस्से पर सिर्फ 33 किलोमीटर है। यह फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है।

यह मार्ग विश्व के तेल और गैस परिवहन के लिए नाड़ी समान है। हर दिन यहां से करीब 20 से 21 मिलियन बैरल तेल गुजरता है, जो वैश्विक तेल व्यापार का लगभग 20-21% है। इस जलडमरूमध्य से सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात एशिया के प्रमुख देशों जैसे भारत और चीन को कच्चा तेल निर्यात करते हैं।
ईरान के फैसले के पीछे की रणनीति
अमेरिका द्वारा किए गए हमले ने ईरान को कड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। ईरान ने संकेत दिया है कि अगर अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने दबाव बनाना जारी रखा तो वह होर्मुज जलडमरूमध्य को कभी भी बंद कर सकता है। रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर इस्माइल कोसरी ने साफ कहा है कि यह विकल्प हमेशा ईरान के एजेंडे में रहेगा।
जलडमरूमध्य के बंद होने से किन देशों पर होगा सबसे ज्यादा असर
सबसे बड़ा असर भारत और चीन पर पड़ेगा क्योंकि ये देश खाड़ी देशों से भारी मात्रा में कच्चा तेल आयात करते हैं। यदि तेल आपूर्ति बाधित हुई तो कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से उछाल आएगा। भारत अपनी कुल तेल जरूरत का करीब 85% आयात करता है। इसका सीधा मतलब है कि तेल महंगा होगा, पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी और महंगाई की मार आम आदमी को झेलनी पड़ेगी।
खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव
खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था largely तेल और गैस के निर्यात पर निर्भर है। अगर होर्मुज जलडमरूमध्य बंद हुआ तो उनका निर्यात बुरी तरह प्रभावित होगा, जिससे उनके राजस्व में भारी गिरावट आ सकती है। हालांकि अमेरिका और इजरायल पर इसका प्रभाव सीमित रहेगा क्योंकि वे वैकल्पिक मार्गों और भंडारण के जरिए आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर संकट
भारत सरकार ने बीते वर्षों में ऊर्जा सुरक्षा के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार बनाए हैं, लेकिन यदि लंबे समय तक आपूर्ति बाधित रही तो ये भंडार भी जल्दी खत्म हो जाएंगे। इससे पेट्रोल, डीजल के दामों के साथ-साथ एलपीजी और रसोई गैस भी महंगी होगी, जिसका असर हर घर पर पड़ेगा।
वैश्विक अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार पर असर
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से वैश्विक शेयर बाजारों में भी हड़कंप मच सकता है। तेल आयातक देशों में करेंसी कमजोर होगी, व्यापार घाटा बढ़ेगा और महंगाई दर ऊंची जाएगी। भारत में रुपए की कीमत गिर सकती है जिससे विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल सकते हैं और शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है।
भारत सरकार के सामने चुनौतियां
भारत सरकार के पास सीमित विकल्प हैं। या तो महंगे तेल के बावजूद आयात जारी रखे या वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, घरेलू तेल उत्पादन और अन्य देशों से आयात पर ध्यान केंद्रित करे। लेकिन यह सब रातोंरात नहीं हो सकता। तत्काल असर तो जेब पर ही पड़ेगा।
आम आदमी पर सीधा बोझ
जब तेल महंगा होगा तो हर चीज महंगी होगी — ट्रांसपोर्ट, किराया, फल-सब्जियां, दूध, गैस सिलेंडर, सब। इससे आम आदमी की बचत घटेगी और खर्च बढ़ेगा। महंगाई पहले ही ऊंचाई पर है, अब इसमें और तेजी आने की आशंका है।
क्या विकल्प है भारत-चीन के पास?
भारत और चीन के पास विकल्प बेहद सीमित हैं। वे वैकल्पिक मार्ग जैसे पाइपलाइन या वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता देशों से तेल लेने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन होर्मुज जैसा बड़ा मार्ग किसी और से पूरा नहीं हो सकता। ईरान की इस चाल ने एशियाई देशों की ऊर्जा नीति को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है।
भविष्य में क्या हो सकता है?
अभी तक ईरान ने सिर्फ प्रस्ताव पारित किया है। अंतिम निर्णय सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद लेगी। अगर कूटनीति से मामला सुलझा तो राहत मिलेगी, लेकिन अगर तनाव बढ़ा तो यह संकट वैश्विक स्तर पर बड़ी चुनौती बन सकता है।
निष्कर्ष
ईरान का यह निर्णय सिर्फ एक क्षेत्रीय मसला नहीं बल्कि पूरी दुनिया की ऊर्जा व्यवस्था पर बड़ा खतरा है। भारत, चीन समेत सभी एशियाई देशों को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए दीर्घकालीन समाधान तलाशने होंगे ताकि ऐसे संकट का सामना दोबारा न करना पड़े।