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ToggleAdar Poonawalla : कामकाजी जीवन और संतुलन पर बहस: 90 घंटे काम का मुद्दा गरमाया
हाल के दिनों में कामकाजी जीवन और संतुलन को लेकर एक नई बहस ने जोर पकड़ लिया है। इसकी शुरुआत लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के अध्यक्ष एस.एन. सुब्रह्मण्यन के उस बयान से हुई, जिसमें उन्होंने एक सप्ताह में 90 घंटे काम करने का सुझाव दिया था। इस बयान ने देशभर में हलचल मचा दी और उद्योग जगत के दिग्गजों से लेकर आम कर्मचारियों तक हर किसी की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं।
इस बहस में हाल ही में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने अपनी राय रखी। उन्होंने 90 घंटे काम करने की अवधारणा की कड़ी आलोचना की और इसे अव्यवहारिक बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि अत्यधिक काम का बोझ न केवल कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि इससे उनकी उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
अदार पूनावाला ने अपने बयान में यह भी कहा कि किसी भी संस्थान को दीर्घकालिक सफलता के लिए अपने कर्मचारियों की भलाई और संतुलन पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अगर कर्मचारी थकान और तनाव से ग्रस्त होंगे, तो उनका काम पर प्रदर्शन भी कमजोर होगा।

काम के घंटे और प्रभाव का मुद्दा
एस.एन. सुब्रह्मण्यन के बयान के बाद, सोशल मीडिया से लेकर कॉर्पोरेट बोर्डरूम तक, हर जगह इस मुद्दे पर चर्चा तेज हो गई है। कुछ उद्योगपतियों ने सुब्रह्मण्यन के विचारों का समर्थन किया, तो वहीं कई लोग इससे असहमत दिखे। समर्थकों का तर्क है कि आधुनिक प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में, अधिक काम करना सफलता के लिए जरूरी हो सकता है। वहीं, आलोचकों का मानना है कि यह विचार असंतुलित और अव्यावहारिक है।
मनुष्य का शरीर और दिमाग लंबे समय तक लगातार काम करने के लिए नहीं बना है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं का कहना है कि हफ्ते में 90 घंटे काम करने से तनाव, थकान और मानसिक समस्याएं बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, यह कर्मचारियों के निजी जीवन और परिवारिक संतुलन को भी बिगाड़ सकता है।
वास्तविकता और समाधान
आज के समय में, जहां काम और जीवन का संतुलन पहले से ही चुनौतीपूर्ण है, ऐसे सुझाव समस्या को और बढ़ा सकते हैं। कामकाजी जीवन के संतुलन को बनाए रखने के लिए संस्थानों को लचीले कामकाजी घंटों, मानसिक स्वास्थ्य के लिए सहायक कार्यक्रम, और कर्मचारियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार को बढ़ावा देना चाहिए।
अदार पूनावाला और अन्य उद्योगपतियों के विचार इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सिर्फ लंबी घंटों तक काम करना ही सफलता की गारंटी नहीं है। इसके बजाय, गुणवत्ता और प्रभावशीलता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
इस बहस ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हम काम के घंटों को बढ़ाकर दीर्घकालिक विकास हासिल कर सकते हैं, या फिर हमें एक ऐसी प्रणाली की जरूरत है जो कर्मचारियों की भलाई और उनकी उत्पादकता दोनों को प्राथमिकता दे। कामकाजी जीवन का संतुलन न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए, बल्कि संस्थान की स्थिरता और प्रगति के लिए भी अनिवार्य है।
पूनावाला ने क्या कुछ कहा?
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने कामकाजी संतुलन पर अपनी राय साझा करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट किया। उन्होंने हैशटैग #WorkLifeBalance के साथ लिखा, “हां, आनंद महिंद्रा, मेरी पत्नी एन पूनावाला भी मुझे अद्भुत मानती हैं। उन्हें रविवार को मुझे निहारना अच्छा लगता है।” उन्होंने यह भी कहा कि गुणवत्ता का काम हमेशा मात्रा से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। उनका यह बयान 90 घंटे काम करने की अवधारणा पर चल रही बहस के बीच कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की अहमियत को उजागर करता है।
क्वालिटी वर्क बनाम 90 घंटे कामकाज: एक नई बहस का जन्म
कामकाजी संतुलन और कार्यक्षेत्र की प्रभावशीलता को लेकर चल रही बहस ने उद्योग जगत में जोर पकड़ लिया है। इसकी शुरुआत लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन के उस बयान से हुई, जिसमें उन्होंने सुझाव दिया कि कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए और रविवार को भी छुट्टी लेने की आवश्यकता नहीं है। इस बयान ने सोशल मीडिया पर विवाद खड़ा कर दिया और विभिन्न उद्योग जगत के दिग्गजों ने इस पर अपनी-अपनी राय दी।
आनंद महिंद्रा का क्वालिटी वर्क पर जोर
महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने इस बहस के बीच अपनी प्रतिक्रिया दी और काम के घंटे से अधिक उसके गुणात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा, “मैं सोशल मीडिया पर इसलिए नहीं हूं कि मैं अकेला हूं। मेरी पत्नी बेहद खूबसूरत है, और मुझे उसे निहारना अच्छा लगता है।”
उन्होंने आगे कहा, “यह बहस काम की मात्रा के बजाय उसके परिणामों पर होनी चाहिए। मेरा मानना है कि क्वालिटी वर्क ज्यादा महत्वपूर्ण है। आप क्या परिणाम दे रहे हैं, यह मायने रखता है, न कि आप कितने घंटे काम कर रहे हैं। भले ही यह 10 घंटे हों, आप 10 घंटे में भी दुनिया बदल सकते हैं।”
आनंद महिंद्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि 40, 70, या 90 घंटे की बहस केवल दिखावटी है और वास्तविक फोकस काम की गुणवत्ता और उसके प्रभाव पर होना चाहिए।
अदार पूनावाला का समर्थन
इस मुद्दे पर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर हैशटैग #WorkLifeBalance के साथ पोस्ट किया, “हां, आनंद महिंद्रा, मेरी पत्नी एन पूनावाला भी मुझे अद्भुत मानती हैं। उन्हें रविवार को मुझे निहारना अच्छा लगता है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि क्वालिटी वर्क हमेशा क्वांटिटी से अधिक महत्वपूर्ण है।
पूनावाला का यह बयान न केवल काम के घंटे बढ़ाने के विचार का विरोध करता है, बल्कि यह भी इंगित करता है कि कर्मचारियों के व्यक्तिगत जीवन और मानसिक स्वास्थ्य का सम्मान किया जाना चाहिए।
एस.एन. सुब्रह्मण्यन की विवादित टिप्पणी
एलएंडटी के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन ने अपने बयान में सप्ताह में 90 घंटे कामकाज की वकालत की थी। उन्होंने कहा, “आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक निहार सकते हैं?” साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि कर्मचारियों को रविवार को भी छुट्टी नहीं लेनी चाहिए।

उनका मानना था कि यदि कर्मचारियों को अधिक समय तक काम करने की आदत डाली जाए, तो उत्पादकता बढ़ सकती है। हालांकि, इस विचार को कई उद्योगपतियों और विशेषज्ञों ने न केवल अस्वीकार किया बल्कि इसे अव्यावहारिक और अवास्तविक भी बताया।
सोशल मीडिया और उद्योग जगत की प्रतिक्रिया
सुब्रह्मण्यन के बयान ने सोशल मीडिया पर तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न की। कई लोगों ने उनके विचारों को खारिज करते हुए कहा कि यह कर्मचारियों की भलाई और मानसिक स्वास्थ्य के खिलाफ है।
विशेषज्ञों का मानना है कि काम के घंटों को बढ़ाने के बजाय कर्मचारियों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए बेहतर कार्यक्षेत्र, लचीलापन और मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर ध्यान देना चाहिए।
क्वालिटी वर्क बनाम मात्रा का महत्व
आधुनिक कार्यक्षेत्र में यह बहस पुरानी हो चली है कि क्या ज्यादा काम करना सफलता की कुंजी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि अधिक काम करने से कर्मचारियों में तनाव, थकान और शारीरिक समस्याएं बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, यह कर्मचारियों के व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।
कई अध्ययनों ने यह साबित किया है कि लंबे समय तक काम करने से उत्पादकता में गिरावट आती है। इसके विपरीत, लचीले कामकाजी घंटे और गुणवत्तापूर्ण काम कर्मचारियों को बेहतर परिणाम देने के लिए प्रेरित करते हैं।
कामकाजी जीवन का संतुलन: समाधान की ओर
कामकाजी जीवन और संतुलन बनाए रखना किसी भी संस्थान की दीर्घकालिक सफलता के लिए जरूरी है। उद्योग जगत को अब यह समझना होगा कि सफलता केवल लंबे समय तक काम करने से नहीं मिलती, बल्कि गुणवत्तापूर्ण और प्रभावी काम के साथ कर्मचारियों के भले के लिए बेहतर माहौल तैयार करने से मिलती है।
पूनावाला और महिंद्रा जैसे उद्योगपतियों के विचार इस बात पर जोर देते हैं कि काम की गुणवत्ता हमेशा उसकी मात्रा से अधिक महत्वपूर्ण है। यह बहस उन सभी संस्थानों के लिए एक सबक है जो केवल घंटों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

अंततः, यह जरूरी है कि संस्थान अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य, संतुलन और भलाई पर ध्यान दें। चाहे काम के घंटे कम हों या ज्यादा, परिणाम ही मायने रखते हैं। बेहतर परिणाम के लिए कर्मचारियों का मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना अनिवार्य है।
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